चन्द्रगुप्त मौर्य
- मौर्य साम्राज्य से पहले मगध साम्राज्य
प्राचीन भारत के वैदिक काल मे भारत मे कई जनपद थे, इन जनपदों ने समय के साथ अपनी आर्थिक और राजनैतिक स्थति को मजबुत करते हुए अपनेआप को महाजनपदों में तब्दील कर दिया। छठी शताब्दी ईसापूर्व में भारत में 16 महाजनपद थे। ये 16 महाजनपद थे -
- काशी
- कौशल
- अंग
- चेदि
- वत्स
- कुरू
- पांचाल
- मतस्य
- सुरसेन
- अश्मक
- अवन्ति
- गान्धार
- कम्बोज
- विज्जि
- मल्ल
- मगध
इन सभी महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली था 'मगध साम्राज्य' मगध साम्राज्य का संस्थापक जरासंध को माना जाता हैं। सबसे पहले मगध साम्राज्य पर हरयकवंश का राज था , उसके पश्चात शिशुनाग वंश और अंत में नन्द वंश का राज था। नन्द वंश के घनानंद को हराकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना करी।
- घनानंद
घनानंद नन्द वंश का आखरी राजा था। इसको अग्रमीज और जनेदरमिज के नाम जाना जाता है। यह एक चंचल मति और दुर्बल मन का शासक होने के साथ साथ एक अस्थिर प्रकृति, दुराचारी व्यक्ति था। इसी के शासनकाल में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। इसके अत्याचरो के कारण इसकी सेना और प्रजा में भारी असंतोष था , इसी असंतोष का फायदा उठाकर आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य ने पुरे नन्द वंश का समूल विनाश कर दिया।
- आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य का जन्म तकशिला के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता की मृत्यु इनके बचपन में हो गई। चाणक्य बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले थे। उन्होंने शीघ्र ही वैदिक साहित्य, शस्त्र संचालन, मंत्र विद्या और नीतिशास्त्रा में दक्षता प्राप्त कर ली।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति
चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति के विषय में काफी मतभेद है। कई इतिहासकार उसे शूद्र बताते है परन्तु अधिकांश इतिहासकार उसे क्षत्रिय मानते है।
- क्या वो शूद्र था ?
चन्द्रगुप्त को शूद्र मानने वाले इतिहासकार विष्णु पुराण और मुद्रराक्षसः का हवाला देते है और यह कहते है कि इन दोनों ग्रंथो में मौर्य वंश को शूद्र बताया गया है। विष्णु पुराण में यह लिखा है कि शिशुनाग वंश बाद मगध पर राज करने वाले शूद्र होगे। अगर इस बात को शिशुनाग वंश के बाद राज करने वाले सभी वंशो पर लागु किया जाए तो कण्व वंश , शुंग वंश और सातवाहन वंश भी शूद्र होने चाहिए परन्तु ऐसा नहीं है यह सभी वंश ब्राह्मण वंश से थे। अतः विष्णु पुराण में जो लिखा गया है वो सिर्फ नन्द वंश पर लागु होता है ना की मौर्य वंश पर। मुद्रराक्षस में चन्द्रगुप्त को 'कुलहीन' कहा गया है जिसका अर्थ कई विद्वानों ने शूद्र जाती से लिया है। परन्तु इसका अर्थ शूद्र न होकर 'वैभवहीन' है क्योकि जिस समय चन्द्रगुप्त का जन्म हुआ था उस समय इसका परिवार राजत्व खो चूका था।
2.क्या चन्द्रगुप्त क्षत्रिय था
सभी जैन और बौद्ध ग्रंथो में चन्द्रगुप्त को क्षत्रिय मानते है। बौद्ध ग्रंथ 'महावंश ' के अनुसार वह मोरिया क्षत्रियो के वंश में पैदा हुआ था। मोरिया शक्यो की एक शाखा थी जो कोशल नरेश के संहार से बचने के लिए पिपल्विन चले गये। बौद्ध ग्रंथ 'दिव्यावदान ' में बिन्दुसार और अशोक अपने आप को क्षत्रिय बताते है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि "उच्च कुल में पैदा राजा चाहे दुर्बल क्यों न हो निम्न कुल में उत्पन्न सबल राजा से श्रेस्ठ है " अतः चाणक्य ने जिसे राजा बनाया था वो चन्द्रगुप्त क्षत्रिय ही था।
Read First Ruler Of Chauhan Dynasty Of Nadol
प्राचीन भारत के वैदिक काल मे भारत मे कई जनपद थे, इन जनपदों ने समय के साथ अपनी आर्थिक और राजनैतिक स्थति को मजबुत करते हुए अपनेआप को महाजनपदों में तब्दील कर दिया। छठी शताब्दी ईसापूर्व में भारत में 16 महाजनपद थे। ये 16 महाजनपद थे -
- घनानंद
घनानंद नन्द वंश का आखरी राजा था। इसको अग्रमीज और जनेदरमिज के नाम जाना जाता है। यह एक चंचल मति और दुर्बल मन का शासक होने के साथ साथ एक अस्थिर प्रकृति, दुराचारी व्यक्ति था। इसी के शासनकाल में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। इसके अत्याचरो के कारण इसकी सेना और प्रजा में भारी असंतोष था , इसी असंतोष का फायदा उठाकर आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य ने पुरे नन्द वंश का समूल विनाश कर दिया।
- आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य का जन्म तकशिला के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता की मृत्यु इनके बचपन में हो गई। चाणक्य बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले थे। उन्होंने शीघ्र ही वैदिक साहित्य, शस्त्र संचालन, मंत्र विद्या और नीतिशास्त्रा में दक्षता प्राप्त कर ली।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति
चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति के विषय में काफी मतभेद है। कई इतिहासकार उसे शूद्र बताते है परन्तु अधिकांश इतिहासकार उसे क्षत्रिय मानते है।
- क्या वो शूद्र था ?
चन्द्रगुप्त को शूद्र मानने वाले इतिहासकार विष्णु पुराण और मुद्रराक्षसः का हवाला देते है और यह कहते है कि इन दोनों ग्रंथो में मौर्य वंश को शूद्र बताया गया है। विष्णु पुराण में यह लिखा है कि शिशुनाग वंश बाद मगध पर राज करने वाले शूद्र होगे। अगर इस बात को शिशुनाग वंश के बाद राज करने वाले सभी वंशो पर लागु किया जाए तो कण्व वंश , शुंग वंश और सातवाहन वंश भी शूद्र होने चाहिए परन्तु ऐसा नहीं है यह सभी वंश ब्राह्मण वंश से थे। अतः विष्णु पुराण में जो लिखा गया है वो सिर्फ नन्द वंश पर लागु होता है ना की मौर्य वंश पर। मुद्रराक्षस में चन्द्रगुप्त को 'कुलहीन' कहा गया है जिसका अर्थ कई विद्वानों ने शूद्र जाती से लिया है। परन्तु इसका अर्थ शूद्र न होकर 'वैभवहीन' है क्योकि जिस समय चन्द्रगुप्त का जन्म हुआ था उस समय इसका परिवार राजत्व खो चूका था।
2.क्या चन्द्रगुप्त क्षत्रिय था
सभी जैन और बौद्ध ग्रंथो में चन्द्रगुप्त को क्षत्रिय मानते है। बौद्ध ग्रंथ 'महावंश ' के अनुसार वह मोरिया क्षत्रियो के वंश में पैदा हुआ था। मोरिया शक्यो की एक शाखा थी जो कोशल नरेश के संहार से बचने के लिए पिपल्विन चले गये। बौद्ध ग्रंथ 'दिव्यावदान ' में बिन्दुसार और अशोक अपने आप को क्षत्रिय बताते है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि "उच्च कुल में पैदा राजा चाहे दुर्बल क्यों न हो निम्न कुल में उत्पन्न सबल राजा से श्रेस्ठ है " अतः चाणक्य ने जिसे राजा बनाया था वो चन्द्रगुप्त क्षत्रिय ही था।
Read First Ruler Of Chauhan Dynasty Of Nadol
घनानंद नन्द वंश का आखरी राजा था। इसको अग्रमीज और जनेदरमिज के नाम जाना जाता है। यह एक चंचल मति और दुर्बल मन का शासक होने के साथ साथ एक अस्थिर प्रकृति, दुराचारी व्यक्ति था। इसी के शासनकाल में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। इसके अत्याचरो के कारण इसकी सेना और प्रजा में भारी असंतोष था , इसी असंतोष का फायदा उठाकर आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य ने पुरे नन्द वंश का समूल विनाश कर दिया।
चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति के विषय में काफी मतभेद है। कई इतिहासकार उसे शूद्र बताते है परन्तु अधिकांश इतिहासकार उसे क्षत्रिय मानते है।
2.क्या चन्द्रगुप्त क्षत्रिय था
सभी जैन और बौद्ध ग्रंथो में चन्द्रगुप्त को क्षत्रिय मानते है। बौद्ध ग्रंथ 'महावंश ' के अनुसार वह मोरिया क्षत्रियो के वंश में पैदा हुआ था। मोरिया शक्यो की एक शाखा थी जो कोशल नरेश के संहार से बचने के लिए पिपल्विन चले गये। बौद्ध ग्रंथ 'दिव्यावदान ' में बिन्दुसार और अशोक अपने आप को क्षत्रिय बताते है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि "उच्च कुल में पैदा राजा चाहे दुर्बल क्यों न हो निम्न कुल में उत्पन्न सबल राजा से श्रेस्ठ है " अतः चाणक्य ने जिसे राजा बनाया था वो चन्द्रगुप्त क्षत्रिय ही था।
- प्रारम्भिक जीवन
चन्द्रगुप्त की माँ मौर्य नगर की रानी थी। जब वह गर्भवती थी तब उस नगर पर एक अन्य राजा ने आक्रमण किया और मौर्य नगर के राजा को मार दिया। गर्भवती रानी अपने भाई के पास चली गई और अपने नवजात बच्चे को फेक दिया। इस नवजात बच्चे की रक्षा चंद नामक एक वृषभ ने की और उस बालक का नाम पड़ा चन्द्रगुप्त। बाद में उस बच्चे को गोपालक ले गया औ र गोपालक से वो बच्चा शिकारी के पास पंहुचा। इसे शिकारी के यहाँ वो बच्चा बड़ा हुआ, यही वो बच्चो के साथ राजकीलम खेल खेलता था। एक दिन चाणक्य ने बच्चो का यह खेल दिखा और उसे चन्द्रगुप्त प्रतिभावान लगा और चाणक्य ने उसे 1000 कार्षापण में खरीद लिया। चन्द्रगुप्त चाणक्य के साथ तक्षशीला आया और यही पर 8 वर्ष तक इसकी विधिवत शिक्षा दीक्षा सम्पन हुई।
- मगध सम्राट - चन्द्रगुप्त मौर्य
- पंजाब और सिंध विजय
जब सिकंदर भारत छोड़कर वापिस लौट गया तब पंजाब और सिंध में क्रमश फलीप II और यूडेमस क्षत्रप थे। जब चन्द्रगुप्त ने यूनानियो के खिलाफ एक राष्ट्रीय युद्ध छेड़ा तब भारतीय सेनिको ने फलीप II की हत्या कर दी और यह सब सुनकर यूडेमस भारत छोड़कर भाग गया। इस विद्रोह के बाद में चन्द्रगुप्त पंजाब और सिंध का राजा बना।
2. मगध विजय
सिंध और पंजाब विजय के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध की तरफ कूच किया। यहाँ इसका सामना घनानंद के सेनापति भदशाल से हुआ और इस युद्ध में घनानंद की हार हुई। इस युद्ध में सैनिक शक्ति के साथ साथ चाणक्य ने साम, दाम , दंड और भेद की कूटनीति का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद सन 322 इ.पु. में चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक हुआ।
- सेलुकस से युद्ध और सकल भारत विजय
मगध सम्राट बनने के बाद चन्द्रगुप्त अपने राज्य का विस्तार करने लग गया। उसने अपने साम्राज्य की सीमा पश्चिम में गुजरात तक फैलाई और दक्षिण में उसने कर्नाटक तक अपनी विजय पताका लहराई।
सन 305 इ.पु. में सेलुकस नाम के एक यूनानी ने फिर सिंधु नदी को पार किया। यह सेलुकस सिकंदर का पूर्व सेनापति और सिरिया का शासक था। लेकिन इसे बार समय बदल गया था जब सिकंदर ने आक्रमण किया था तब भारत में राजनैतिक अस्थिरता थी परन्तु इस बार लगभग पुरे देश पर मौर्य वंश का एकछत्र राज था इसी कारण 303ई.पु. में सेलुकस की हार हुई और उसे संधि करनी पड़ी। इस संधि की शर्तो के अनुसार चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त मिले कंधार , काबुल , हेरात , मकरान और इसी सिंधी में सेलुकस ने अपनी बेटी का विवाह चन्द्रगुप्त से करवाया। चन्द्रगुप्त ने सेलुकस को 500 हाथी दिए और सेलुकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नाम का राजदूत भेजा।
इस युद्ध के बाद चन्द्रगुप्त का साम्राज्य हिन्दुकुश पहाड़ियों तक पहुंच गया।
Read- Wars that Change Indian History
- साम्राज्य विस्तार
चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार उत्तरपश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से लेकर पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था।
- चन्द्रगुप्त की जैन दिक्षा और मृत्यु
चन्द्रगुप्त ने अपने अंत समय में जैन धर्म में दिक्षा ले ली और चंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या करी। यही चन्द्रगुप्त ने संलेखना पद्ददति द्वारा 298 ई.पु. में अपने प्राण त्याग दिए।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का ऐतिहासिक महत्व
चन्द्रगुप्त एक सम्राट होने से पहले वो एक क्रन्तिकारी था। इसने ना सिर्फ यूनानियों को भारत से खदेड़ा अपतु इसने भारत में उस मौर्य साम्राज्य की स्थापना करी जिसमे अशोक जैसा महान सम्राट दिया।
आपको यह पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके बताए
Read सोमनाथ मंदिर का इतिहास
Buy the Book Chandragupta maurya
- प्रारम्भिक जीवन
चन्द्रगुप्त की माँ मौर्य नगर की रानी थी। जब वह गर्भवती थी तब उस नगर पर एक अन्य राजा ने आक्रमण किया और मौर्य नगर के राजा को मार दिया। गर्भवती रानी अपने भाई के पास चली गई और अपने नवजात बच्चे को फेक दिया। इस नवजात बच्चे की रक्षा चंद नामक एक वृषभ ने की और उस बालक का नाम पड़ा चन्द्रगुप्त। बाद में उस बच्चे को गोपालक ले गया औ र गोपालक से वो बच्चा शिकारी के पास पंहुचा। इसे शिकारी के यहाँ वो बच्चा बड़ा हुआ, यही वो बच्चो के साथ राजकीलम खेल खेलता था। एक दिन चाणक्य ने बच्चो का यह खेल दिखा और उसे चन्द्रगुप्त प्रतिभावान लगा और चाणक्य ने उसे 1000 कार्षापण में खरीद लिया। चन्द्रगुप्त चाणक्य के साथ तक्षशीला आया और यही पर 8 वर्ष तक इसकी विधिवत शिक्षा दीक्षा सम्पन हुई।
चन्द्रगुप्त की माँ मौर्य नगर की रानी थी। जब वह गर्भवती थी तब उस नगर पर एक अन्य राजा ने आक्रमण किया और मौर्य नगर के राजा को मार दिया। गर्भवती रानी अपने भाई के पास चली गई और अपने नवजात बच्चे को फेक दिया। इस नवजात बच्चे की रक्षा चंद नामक एक वृषभ ने की और उस बालक का नाम पड़ा चन्द्रगुप्त। बाद में उस बच्चे को गोपालक ले गया औ र गोपालक से वो बच्चा शिकारी के पास पंहुचा। इसे शिकारी के यहाँ वो बच्चा बड़ा हुआ, यही वो बच्चो के साथ राजकीलम खेल खेलता था। एक दिन चाणक्य ने बच्चो का यह खेल दिखा और उसे चन्द्रगुप्त प्रतिभावान लगा और चाणक्य ने उसे 1000 कार्षापण में खरीद लिया। चन्द्रगुप्त चाणक्य के साथ तक्षशीला आया और यही पर 8 वर्ष तक इसकी विधिवत शिक्षा दीक्षा सम्पन हुई।
- मगध सम्राट - चन्द्रगुप्त मौर्य
- पंजाब और सिंध विजय
जब सिकंदर भारत छोड़कर वापिस लौट गया तब पंजाब और सिंध में क्रमश फलीप II और यूडेमस क्षत्रप थे। जब चन्द्रगुप्त ने यूनानियो के खिलाफ एक राष्ट्रीय युद्ध छेड़ा तब भारतीय सेनिको ने फलीप II की हत्या कर दी और यह सब सुनकर यूडेमस भारत छोड़कर भाग गया। इस विद्रोह के बाद में चन्द्रगुप्त पंजाब और सिंध का राजा बना।
2. मगध विजय
सिंध और पंजाब विजय के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध की तरफ कूच किया। यहाँ इसका सामना घनानंद के सेनापति भदशाल से हुआ और इस युद्ध में घनानंद की हार हुई। इस युद्ध में सैनिक शक्ति के साथ साथ चाणक्य ने साम, दाम , दंड और भेद की कूटनीति का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद सन 322 इ.पु. में चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक हुआ।
- सेलुकस से युद्ध और सकल भारत विजय
मगध सम्राट बनने के बाद चन्द्रगुप्त अपने राज्य का विस्तार करने लग गया। उसने अपने साम्राज्य की सीमा पश्चिम में गुजरात तक फैलाई और दक्षिण में उसने कर्नाटक तक अपनी विजय पताका लहराई।
सन 305 इ.पु. में सेलुकस नाम के एक यूनानी ने फिर सिंधु नदी को पार किया। यह सेलुकस सिकंदर का पूर्व सेनापति और सिरिया का शासक था। लेकिन इसे बार समय बदल गया था जब सिकंदर ने आक्रमण किया था तब भारत में राजनैतिक अस्थिरता थी परन्तु इस बार लगभग पुरे देश पर मौर्य वंश का एकछत्र राज था इसी कारण 303ई.पु. में सेलुकस की हार हुई और उसे संधि करनी पड़ी। इस संधि की शर्तो के अनुसार चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त मिले कंधार , काबुल , हेरात , मकरान और इसी सिंधी में सेलुकस ने अपनी बेटी का विवाह चन्द्रगुप्त से करवाया। चन्द्रगुप्त ने सेलुकस को 500 हाथी दिए और सेलुकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नाम का राजदूत भेजा।
इस युद्ध के बाद चन्द्रगुप्त का साम्राज्य हिन्दुकुश पहाड़ियों तक पहुंच गया।
Read- Wars that Change Indian History
- साम्राज्य विस्तार
चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार उत्तरपश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से लेकर पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था।
- चन्द्रगुप्त की जैन दिक्षा और मृत्यु
चन्द्रगुप्त ने अपने अंत समय में जैन धर्म में दिक्षा ले ली और चंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या करी। यही चन्द्रगुप्त ने संलेखना पद्ददति द्वारा 298 ई.पु. में अपने प्राण त्याग दिए।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का ऐतिहासिक महत्व
चन्द्रगुप्त एक सम्राट होने से पहले वो एक क्रन्तिकारी था। इसने ना सिर्फ यूनानियों को भारत से खदेड़ा अपतु इसने भारत में उस मौर्य साम्राज्य की स्थापना करी जिसमे अशोक जैसा महान सम्राट दिया।
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जब सिकंदर भारत छोड़कर वापिस लौट गया तब पंजाब और सिंध में क्रमश फलीप II और यूडेमस क्षत्रप थे। जब चन्द्रगुप्त ने यूनानियो के खिलाफ एक राष्ट्रीय युद्ध छेड़ा तब भारतीय सेनिको ने फलीप II की हत्या कर दी और यह सब सुनकर यूडेमस भारत छोड़कर भाग गया। इस विद्रोह के बाद में चन्द्रगुप्त पंजाब और सिंध का राजा बना।
2. मगध विजय
सिंध और पंजाब विजय के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध की तरफ कूच किया। यहाँ इसका सामना घनानंद के सेनापति भदशाल से हुआ और इस युद्ध में घनानंद की हार हुई। इस युद्ध में सैनिक शक्ति के साथ साथ चाणक्य ने साम, दाम , दंड और भेद की कूटनीति का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद सन 322 इ.पु. में चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक हुआ।
- सेलुकस से युद्ध और सकल भारत विजय
मगध सम्राट बनने के बाद चन्द्रगुप्त अपने राज्य का विस्तार करने लग गया। उसने अपने साम्राज्य की सीमा पश्चिम में गुजरात तक फैलाई और दक्षिण में उसने कर्नाटक तक अपनी विजय पताका लहराई।
सन 305 इ.पु. में सेलुकस नाम के एक यूनानी ने फिर सिंधु नदी को पार किया। यह सेलुकस सिकंदर का पूर्व सेनापति और सिरिया का शासक था। लेकिन इसे बार समय बदल गया था जब सिकंदर ने आक्रमण किया था तब भारत में राजनैतिक अस्थिरता थी परन्तु इस बार लगभग पुरे देश पर मौर्य वंश का एकछत्र राज था इसी कारण 303ई.पु. में सेलुकस की हार हुई और उसे संधि करनी पड़ी। इस संधि की शर्तो के अनुसार चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त मिले कंधार , काबुल , हेरात , मकरान और इसी सिंधी में सेलुकस ने अपनी बेटी का विवाह चन्द्रगुप्त से करवाया। चन्द्रगुप्त ने सेलुकस को 500 हाथी दिए और सेलुकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नाम का राजदूत भेजा।
इस युद्ध के बाद चन्द्रगुप्त का साम्राज्य हिन्दुकुश पहाड़ियों तक पहुंच गया।
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- साम्राज्य विस्तार
चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार उत्तरपश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से लेकर पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था।
मगध सम्राट बनने के बाद चन्द्रगुप्त अपने राज्य का विस्तार करने लग गया। उसने अपने साम्राज्य की सीमा पश्चिम में गुजरात तक फैलाई और दक्षिण में उसने कर्नाटक तक अपनी विजय पताका लहराई।
सन 305 इ.पु. में सेलुकस नाम के एक यूनानी ने फिर सिंधु नदी को पार किया। यह सेलुकस सिकंदर का पूर्व सेनापति और सिरिया का शासक था। लेकिन इसे बार समय बदल गया था जब सिकंदर ने आक्रमण किया था तब भारत में राजनैतिक अस्थिरता थी परन्तु इस बार लगभग पुरे देश पर मौर्य वंश का एकछत्र राज था इसी कारण 303ई.पु. में सेलुकस की हार हुई और उसे संधि करनी पड़ी। इस संधि की शर्तो के अनुसार चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त मिले कंधार , काबुल , हेरात , मकरान और इसी सिंधी में सेलुकस ने अपनी बेटी का विवाह चन्द्रगुप्त से करवाया। चन्द्रगुप्त ने सेलुकस को 500 हाथी दिए और सेलुकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नाम का राजदूत भेजा।
इस युद्ध के बाद चन्द्रगुप्त का साम्राज्य हिन्दुकुश पहाड़ियों तक पहुंच गया।
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- चन्द्रगुप्त की जैन दिक्षा और मृत्यु
चन्द्रगुप्त ने अपने अंत समय में जैन धर्म में दिक्षा ले ली और चंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या करी। यही चन्द्रगुप्त ने संलेखना पद्ददति द्वारा 298 ई.पु. में अपने प्राण त्याग दिए।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का ऐतिहासिक महत्व
चन्द्रगुप्त एक सम्राट होने से पहले वो एक क्रन्तिकारी था। इसने ना सिर्फ यूनानियों को भारत से खदेड़ा अपतु इसने भारत में उस मौर्य साम्राज्य की स्थापना करी जिसमे अशोक जैसा महान सम्राट दिया।
आपको यह पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके बताए
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आपको यह पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके बताए
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भाई एक संशोधन कर लो...उसके बाद अशोक उसका पौत्र जिसने पूरे भारत पर एकछत्र राज किया।
ReplyDeleteok me ye change kar dunga or thank you mujhe ye galti batne ke liye
Deleteक्षमा करना...मुझे भाई की जगह मित्र कह के सम्बोधित करना था...
ReplyDelete"मित्र एक संशोधन कर लो...उसके बाद अशोक उसका पौत्र जिसने पूरे भारत पर एकछत्र राज किया"।