Indian history की कुछ कहानिया ऐसी होती है जो हम बहुत कुछ सिखाती है। आज मेरी इस पोस्ट में मै आपको Indian History की एक ऐसी घटना के बारे में बताऊंगा, जो विध्वंश और पुनःनिर्माण की कहानी है। यह कहानी है भारत के 1000 साल के संघर्ष की, जिसमे संघर्ष हुआ राष्ट्रभक्तो और बाहरी आक्रमणकारियो की बीच में। यह कहानी हमें बताती है किस प्रकार किसकी नफ़रत हजारों निर्दोष लोगो की जान ले लेती है। इस कहानी में एक तरफ तो नफ़रत के कारण विध्वंश होता है और दुसरी तरफ भक्ति के कारण उस विध्वंश का पुनःनिर्माण।
यह कहानी है भारत के प्रथम ज्योतर्लिंग सोमनाथ की। सोमनाथ मंदिर भारत के गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के वेरावल नगरपालिका से 6 km दूर स्थित है। सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतर्लिंग में से एक है इसलिए यहाँ हर साल हजारो भक्त आते है। सोमनाथ मंदिर न सिर्फ धार्मिक रूप से अपितु ऐतिहासिक रूप से भी बहुत महत्व पूर्ण है तो चलये जानते है सोमनाथ मंदिर का इतिहास।
- सोमनाथ मंदिर का इतिहास
- पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा से किया था। चन्द्रमा उन 27 में से रोहणी से ज्यादा प्रेम करते थे इस कारण से वे बाकि सभी रानियों के साथ सौतेला व्यवहार करते थे। यह बात जब चन्द्रमा की बाकि 26 रानियों ने जब प्रजापति दक्ष को बताई तब प्रजापति ने चन्द्रमा को समझया और वहा से चले गए। लेकिन इतना समझाने के बाद भी जब चन्द्रमा नहीं माने तो प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा को यह श्राप दिया की वे क्षयरोग से ग्रसित हो जाए और जब प्रजापति ने उन्हें यह श्राप दिया तब पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब देवताओ ने ब्रह्मा जी से इसका उपाय पूछा तब ब्रह्मा जी ने कहा की "इस श्राप से मुक्ति के लिए चन्द्रमा को प्रभास क्षेत्र(सौराष्ट्र ) में जाकर भगवान शिव के पूजा करो" इतना सुनकर चन्द्रमा प्रभास क्षेत्र में पहुँचकर कुल 6 महीने तक भगवान शिव की पूजा करते रहे। तब भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें वर मांगने को कहा तब चन्द्रंमा ने शिवजी से उनका रोग सही करने को कहा तब शिवजी ने उन्हें वरदान दिया की वे 15 दिन क्षीण रहेंगे और 15 दिन रूपवान। यह वर पाकर चन्द्रमा खुश हुए और उन्होंने वहाँ पर सोने का मंदिर बनवाया। त्रेतायुग में रावण ने सोमनाथ में चांदी का मंदिर बनवाया और फिर द्रोपर युग में श्री कृष्ण ने यहाँ पर चन्दन काष्ट का मंदिर बनवाया।
read- चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास
- सोमनाथ मंदिर का विध्वंश
महमूद ग़ज़नवी गज़नी राज्य ( वर्तमान पाकिस्तान-अफनिस्तान सीमा क्षेत्र ) का शासक था। इसने सर्वप्रथम भारत पर हमला सन 1001 A . D . में किया इसके बाद इसने लगभग भारत पर 17 बार हमले किये। अक्टूबर 1025 A,D में महमूद ग़ज़नवी 30 हज़ार घोड़े और 30 हज़ार ऊट और हज़ारो पैदल सैनिक लेकर गज़नी से गुजरात की तरफ बढ़ा और जनवरी 1026 A.D में यह सोमनाथ पंहुचा और 8 दिन तक संघर्ष करने के बाद इसने सोमनाथ पर कब्ज़ा किया और वहाँ लूटमार की और असंख्य निर्दोष लोगो को मारा।

गज़नी का आक्रमण
सन 1299 में अलाउद्दीन खिलजी ने सोमनाथ पर हमला किया। इस युद्ध में यहाँ के राजपूतो ने खिलजी का काफी प्रतिरोध किया परन्तु वे हार गए और खिलजी ने शिवलिंग को तोड़कर उसको दिल्ली भेज दिया।
सन 1395 में गुजरात सल्तनत के ज़फर खान ने सोमनाथ पर हमला किया और उसे फिर से ध्व्स्त कर दिया और सन 1451 में महमूद बेगड़ा ने सोमनाथ पर हमला किया और वहाँ से शिवलिंग को हटाकर वहाँ मस्जिद बना दी।
सन 1665 में औरंगज़ेब ने मोहमद आज़म को सोमनाथ पर हमला करने को कहा और मोहमद आज़म ने सोमनाथ मंदिर को पुनः थोड़ दिया।
- लाठी के राजकुंवर वीर हमीरजी गुहिल

Hammirji gohil staue
सन 1299 में जब अलाउद्दीन खिलजी ने सोमनाथ पर हमला किया तब लाठी के राजकुंवर हमीरजी गुहिल जो की उस समय मात्र 15 वर्ष के थे , उन्होंने इस मंदिर के रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहुति दे दी। वीर हम्मीरजी ने यह कहा था की " भले कोई आवे ना आवे मारे साथे, पण हून जइस सोमनाथ नी सखाते "(अर्थ - भले ही कोइ मेरे साथ आये या ना आये परन्तु मै सोमनाथ के रक्षा जरूर
- मंदिर का पुनःनिर्माण
महमूद ग़ज़नवी के हमले के बाद सन 1169 में कुमारपाल ने सोमनाथ मंदिर का भव्य पुनः निर्माण करवाया जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने तुड़वा दिया।
सन 1308 में चुंडासम राजवंश के राजा महिपाल प्रथम ने सोमनाथ मंदिर की पुनःस्थापना की और लगभग 1351 के आसपास उनके पुत्र रा खेंगरा ने वहाँ शिवलिंग के स्थापना की।
सन 1783 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर सोमनाथ मंदिर के पास शिवजी का नया मंदिर बनवाया जिसका गर्भगृह जमीन से थोड़ा निचे है। इस मंदिर को आज अहिल्याबाई मंदिर के नाम से जाना जाता है।
- वर्तमान मंदिर का निर्माण

new Somnath Mandir
सन 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तब राष्ट्र को एक करने का जिम्मा सरदार वल्लभाई पटेल को दिया गया। सरदार वल्लभाई पटेल ने जूनागढ़ रियासत , हैदराबाद रियासत और कश्मीर रियासत को छोड़ कर सभी रियासतों का भारत संघ में विलय कर दिया। जूनागढ़ के सुल्तान ने अपनी प्रजा के विरुद्ध जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिला दिया। तब जूनागढ़ के प्रजा ने आरज़ी हुकूमत की स्थापना करके 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ को आज़ाद किया और 12 नवंबर 1947 को सरदार पटेल जूनागढ़ आए और जूनागढ़ को आधिकारिक रूप से भारत संघ मिलाया।
13 नवंबर 1947 को सरदार पटेल ,जाम साहेब दिग्विजय सिंह , कन्हैयालाल मुंशी और काकासाहब गाडगील ने सोमनाथ के मंदिर के टूटे अवशेषो को निरक्षण किया और सोमनाथ की ऐसे हालत देखकर सरदार पटेल ने भरी जनसभा के सामने हाथ में समुद्र का जल लेकर सोमनाथ के पुनः निर्माण की प्रतिज्ञा ली। नए मंदिर के निर्माण के लिए पुरातत्व विभाग ने उत्खनन किया और वहाँ से प्राप्त मूर्तियों को प्रभास पतन म्यूजियम में रखा गया। इस नए मंदिर के परिकल्पना श्री प्रभाशंकर सोमपुरा ने की। इस मंदिर शिलान्याश सन 1950 में जामसाहेब के द्वारा किया गया और 11 मई 1951 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा इस मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा हुई। जामनगर की महारानी गुलाबकंवरबा ने मंदिर में दिग्विजय द्वार का निर्माण किया जिसका शिलान्याश 19 मई 1970 में हुआ। 1 दिसंबर 1995 में देश के राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा ने इस मंदिर को देश के नाम समर्पित किया।
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read- चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास
- सोमनाथ मंदिर का विध्वंश
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गज़नी का आक्रमण |
सन 1395 में गुजरात सल्तनत के ज़फर खान ने सोमनाथ पर हमला किया और उसे फिर से ध्व्स्त कर दिया और सन 1451 में महमूद बेगड़ा ने सोमनाथ पर हमला किया और वहाँ से शिवलिंग को हटाकर वहाँ मस्जिद बना दी।
सन 1665 में औरंगज़ेब ने मोहमद आज़म को सोमनाथ पर हमला करने को कहा और मोहमद आज़म ने सोमनाथ मंदिर को पुनः थोड़ दिया।
- लाठी के राजकुंवर वीर हमीरजी गुहिल
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Hammirji gohil staue |
- मंदिर का पुनःनिर्माण
सन 1308 में चुंडासम राजवंश के राजा महिपाल प्रथम ने सोमनाथ मंदिर की पुनःस्थापना की और लगभग 1351 के आसपास उनके पुत्र रा खेंगरा ने वहाँ शिवलिंग के स्थापना की।
सन 1783 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर सोमनाथ मंदिर के पास शिवजी का नया मंदिर बनवाया जिसका गर्भगृह जमीन से थोड़ा निचे है। इस मंदिर को आज अहिल्याबाई मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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13 नवंबर 1947 को सरदार पटेल ,जाम साहेब दिग्विजय सिंह , कन्हैयालाल मुंशी और काकासाहब गाडगील ने सोमनाथ के मंदिर के टूटे अवशेषो को निरक्षण किया और सोमनाथ की ऐसे हालत देखकर सरदार पटेल ने भरी जनसभा के सामने हाथ में समुद्र का जल लेकर सोमनाथ के पुनः निर्माण की प्रतिज्ञा ली। नए मंदिर के निर्माण के लिए पुरातत्व विभाग ने उत्खनन किया और वहाँ से प्राप्त मूर्तियों को प्रभास पतन म्यूजियम में रखा गया। इस नए मंदिर के परिकल्पना श्री प्रभाशंकर सोमपुरा ने की। इस मंदिर शिलान्याश सन 1950 में जामसाहेब के द्वारा किया गया और 11 मई 1951 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा इस मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा हुई। जामनगर की महारानी गुलाबकंवरबा ने मंदिर में दिग्विजय द्वार का निर्माण किया जिसका शिलान्याश 19 मई 1970 में हुआ। 1 दिसंबर 1995 में देश के राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा ने इस मंदिर को देश के नाम समर्पित किया।
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